संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को भारत में अक्सर "सभी परीक्षाओं की जननी" कहा जाता है। हर साल, लाखों उम्मीदवार सिविल सेवक बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपने कॅरियर और व्यक्तिगत जीवन को छोड़ देते हैं। लेकिन आंकड़े एक कठोर सच्चाई बयान करते हैं: हर वर्ष लगभग 11 लाख उम्मीदवार आवेदन करते हैं, जबकि रिक्त पदों की संख्या केवल 900-1000 होती है। हैरानी की बात यह है कि वर्षों से रिक्तियों की संख्या में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि प्रयासों की संख्या बढ़ा दी गई है। इसके चलते सफलता दर 0.1% से भी कम के स्तर पर पहुंच गई है जो कि यूपीएससी को दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में से एक बना देती है।
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कुछ लोगों के लिए यह विशिष्टता इस बात का प्रमाण है कि यूपीएससी में केवल सबसे दृढ़ निश्चयी और योग्य उम्मीदवारों को ही अंतिम सूची तक पहुंचने का मौका मिलता है। वहीं दूसरी ओर, कुछ लोगों के लिए यह चिंता का विषय है कि बार-बार प्रयास करने को बढ़ावा देने वाली यह प्रणाली जो अंत में अधिकांश युवाओं को भग्न स्वप्नों के साथ छोड़ जाती है क्या युवाओं पर अत्यधिक बोझ डालती है।
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को भारत में अक्सर "सभी परीक्षाओं की जननी" कहा जाता है। कभी यूपीएससी जन सेवा की राह पर चलने का एक कठिन लेकिन प्रतिष्ठित मार्ग माना जाता था, पर आज यह युद्धभूमि बन चुकी है, जहां लाखों उम्मीदवार चंद सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते नजर आते हैं। एक अनार सौ बीमार- वाली कहावत से भी लगभग 12 गुना अधिक प्रतिस्पर्धा है।
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के अंत में भी प्रतिस्पर्धा बेहद तगड़ी थी — हर 365 उम्मीदवारों पर औसतन 1 सीट उपलब्ध होती थी। लेकिन हाल के वर्षों में यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। 2020 से 2023 के बीच हर साल लगभग 11.3 लाख लोगों ने यूपीएससी के लिए आवेदन किया, जबकि औसतन केवल 929 पद ही उपलब्ध थे। इसका मतलब यह है कि हर 1 सफल उम्मीदवार के पीछे 1,200 से अधिक उम्मीदवारों को असफलता हाथ लगी।
प्रतिस्पर्धा किस तेजी से बढ़ी, इसकी तुलना यहां देखें:
अवधि | आवेदक (लाख में) | प्रति वर्ष औसत आवेदक | मुख्य परीक्षा के लिए योग्य | साक्षात्कार के लिए योग्य | रिक्तियां | प्रति रिक्ति प्रतिस्पर्धा |
2006–2009 (4 वर्ष) | 14.52 | 3.63 लाख | 40,413 (10,103/वर्ष) | 7,858 (1,965/वर्ष) | 3,157 (789/वर्ष) | 1: 460 |
2021–2024 (4 वर्ष) | 45.22 | 11.31 | 523411 (13085/वर्ष) | 10113 (2525/वर्ष) | 3719 (929/वर्ष) | 1 : 1,215 |
क्या यूपीएससी आज भी योग्यता आधारित एक निष्पक्ष परीक्षा है, या फिर अब एक लॉटरी बन चुकी है, जहां अक्सर किस्मत तय करती है कि कौन सफल होगा? इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन यह ज़रूर सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सिर्फ मेहनत और प्रतिभा ही काफी है, या अब सफलता के लिए भाग्य भी उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है।
चयन दर इस प्रकार है:
वर्ष | आवेदक | चयनित | सफलता दर |
2013 | 7.7 लाख | 998 | 0.12% |
2014 | 9.4 लाख | 1122 | 0.12% |
2017 | 9.6 लाख | 1056 | 0.11% |
2020 | 10.5 लाख | 796 | 0.08% |
2024 | 9.9 लाख | 1009 | 0.10% |
आज यूपीएससी परीक्षा में सफलता दर लगभग (Success rate in upsc in Hindi) 0.1% के आसपास है — यानी हर 1,200 अभ्यर्थियों में से केवल 1 ही सफल होता है। इस प्रणाली के समर्थक तर्क देते हैं कि इतनी कठिन प्रतिस्पर्धा यह सुनिश्चित करती है कि केवल सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार ही चयनित हों। लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह व्यवस्था एक कृत्रिम अभाव पैदा करती है, जिसमें वर्षों के त्याग के बाद लाखों युवा बिना किसी उल्लेखनीय उपलब्धि के खाली हाथ छूट जाते हैं।
बहस
आलोचकों का कहना है कि UPSC में आवेदन करने वालों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है, लेकिन रिक्तियों की संख्या लगभग स्थिर बनी हुई है। इस असंतुलन ने परीक्षा को एक "प्रेशर कुकर" वाली स्थिति में बदल दिया है। यही कारण है कि कोचिंग संस्थानों का बाज़ार तेजी से फल-फूल रहा है, और लाखों युवा अपने जीवन के सबसे कीमती वर्ष इसी संघर्ष में गंवा देते हैं — कई बार बिना किसी ठोस परिणाम के।
वहीं समर्थकों का मानना है कि UPSC एक चयनात्मक परीक्षा होनी ही चाहिए। उनके अनुसार इसकी कठिन प्रतिस्पर्धा और सीमित चयन ही इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को दर्शाते हैं। उनके लिए यह एक ऐसा मंच है जहां केवल सबसे उपयुक्त और सक्षम व्यक्ति को सेवा का अवसर मिलता है।
सच्चाई कहीं बीच में है: यह परीक्षा एक ओर भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं के द्वार खोलती है, वहीं दूसरी ओर अधिकांश उम्मीदवारों के लिए संभावनाएं बहुत कम हैं।
साल 2013 यूपीएससी के इतिहास में एक बड़ा बदलाव लेकर आया — और जरूरी नहीं है कि बेहतरी के लिए था। उसी वर्ष UPSC ने अचानक मुख्य परीक्षा (Mains) का पैटर्न बदल दिया, वह भी परीक्षा के केवल कुछ महीने पूर्व। नए बदलावों में सामान्य अध्ययन (General Studies) के पेपरों की संख्या बढ़ा दी गई, उनके वेटेज (weightage) को भी बढ़ा दिया गया, जबकि पारंपरिक विकल्पीय विषयों (optional subjects) का महत्व कम कर दिया गया। और इस बदलाव से वे अभ्यर्थी जो वर्षों से पुराने पैटर्न के अनुसार तैयारी कर रहे थे, हैरान रह गए।
छात्रों ने इसे अनुचित और भेदभावपूर्ण बताया। देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें अतिरिक्त प्रयासों और आयु सीमा में छूट की मांग की गई। सरकार ने इन मांगों के जवाब में 2014 से सभी उम्मीदवारों के लिए दो अतिरिक्त प्रयास देने का फैसला किया। लेकिन यहां कहानी में एक दिलचस्प मोड़ आया — जो शुरुआत में अस्थायी राहत के तौर पर दिए गए दो अतिरिक्त प्रयास, नई व्यवस्था का हिस्सा बन गए।
छात्रों की मदद करने की बजाय, इस बदलाव ने अभ्यर्थियों को तैयारी के बड़े चक्रव्यूह में फंसा दिया, जिससे वे अपने जवानी के सबसे कीमती साल उस परीक्षा की तैयारी में बिताने लगे। 2014 से पहले, कई उम्मीदवार 2-3 प्रयासों में परीक्षा पास कर लेते थे। लेकिन बदलाव के बाद औसत प्रयासों की संख्या बढ़कर 3-4 हो गई, और कई लोग 6 या उससे अधिक प्रयास तक जाते रहे। अगर इसमें यह भी माना जाए कि अधिकांश छात्र अपनी पहली कोशिश से पहले लगभग 2 साल तैयारी में बिताते हैं, तो इसका मतलब है कि एक उम्मीदवार 6 साल या उससे ज्यादा समय UPSC जैसी बेहद कठिन परीक्षा की तैयारी में लगा रहे हैं, जहां सफलता की दर महज 0.1% है।
अवधि | सफलता से पहले औसत प्रयास | रुझान |
2014 से पहले | 2–3 प्रयास | 50% ने दूसरे प्रयास में सफलता पाई |
2014 के बाद | 3–4 प्रयास | 93% को कई प्रयासों की आवश्यकता हुई |
यह बदलाव कई असहज सवाल खड़े करता है: क्या परीक्षा के पैटर्न में बदलाव सचमुच परीक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए किया गया था, या यह अनजाने में अभ्यर्थियों को अधिक प्रयासों की ओर धकेलने का माध्यम बना, लाभ कोचिंग संस्थानों को मिला, और परीक्षा शुल्क और GST शुल्क से सरकार को भी?
कई लोग कहते हैं कि परीक्षा को और निष्पक्ष बनाने की बजाय, 2013 के सुधार ने बार-बार प्रयास करने वाली एक पीढ़ी तैयार की — जिसमें अंतहीन तैयारी के चक्रव्यूह में फंसे, युवावस्था के कीमती उत्पादक वर्षों गंवाने के साथ ही बढ़ती आर्थिक लागत बोझ के नीचे दबे छात्र थे।
कागज़ों पर तो संघ लोक सेवा आयोग उदार प्रतीत होता है। अलग-अलग श्रेणियों को कई मौके दिए जाते हैं:
श्रेणी | आयु सीमा | प्रयासों की संख्या |
सामान्य | 32 | 6 |
अन्य पिछड़ा वर्ग | 35 | 9 |
एससी/एसटी | 37 | असीमित |
दिव्यांगजन | 42 | सामान्य और ओबीसी के लिए 9 एससी/एसटी के लिए असीमित |
ईडब्ल्यूएस | 32 | 6 |
पहली नजर में यह न्यायसंगत और समावेशी लगता है। लेकिन असलियत कुछ और ही कहती है। ज्यादातर अभ्यर्थी अपनी “अनुमत प्रयासों” (permitted attempts) के भीतर परीक्षा पास नहीं कर पाते। इसके बजाय, वे बार-बार असफलताओं के अंतहीन चक्र में फंस जाते हैं।
93% छात्रों को सफल होने के लिए एक से अधिक प्रयास करने पड़ते हैं।
70% को 3 से अधिक प्रयास करने पड़ते हैं।
30% में 5 या अधिक प्रयास किये जा सकते हैं।
17% तो 6 प्रयास भी पार कर जाते हैं।
इसका मतलब है कि UPSC द्वारा दी गई “अनुमत प्रयासों” की सीमा सुविधा से ज़्यादा एक जाल बन गई है। अगर पहली कोशिश से पहले बिताए गए 2 साल की तैयारी को भी इसमें शामिल करें, तो अभ्यर्थी 6 से 12 साल तक उस सपने के पीछे दौड़ते रहते हैं, जहां सफलता की दर मात्र 0.1% है — और 99.9% असफल होते हैं।
विरोधाभास
2014 से पहले: सफल होने वालों को अधिकांशतया 2-3 प्रयास लगते थे।
अब: अब टॉपर्स भी अक्सर चौथे-पांचवें प्रयास वाले बन रहे हैं।
योग्यता आधारित परीक्षा होने की बजाय, UPSC धीरे-धीरे सहनशीलता की परीक्षा बनती जा रही है। जितना अधिक समय, पैसा और मानसिक ताकत आप लगा सकते हैं, आपकी सफलता की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया में कोचिंग संस्थान और सरकार (परीक्षा शुल्क और GST के माध्यम से) लाभान्वित होते हैं, जबकि अभ्यर्थी अपने सबसे कीमती साल गंवा देते हैं — बिना किसी निश्चित सफलता के।
शीर्ष रैंक वालों को 3-5 प्रयासों की आवश्यकता होती है - फ्रेशर्स लगभग हमेशा असफल होते हैं
यूपीएससी परीक्षा पहली ही कोशिश में पास करना अक्सर दिवास्वप्न सच होने जैसी बात है। लेकिन हाल के रिजल्ट बताते हैं कि ऐसे मामले अब दुर्लभ होते जा रहे हैं।
वर्ष 2024 की टॉपर शक्ति दुबे अपने पहले 3 प्रयासों में प्रिलिम्स पास नहीं कर सकीं। चौथे प्रयास में मेन्स तो क्लियर कर लिया, लेकिन इंटरव्यू में सफल नहीं हो पाईं। अंततः पांचवे प्रयास में टॉप किया। शक्ति ने 2018 में तैयारी शुरू की थी और 2025 में IAS अधिकारी बनीं — यानी उन्होंने आईएसएस ऑफिसर के मुकाम तक पहुंचने के लिए सात साल का समर्पित समय लगाया। उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि भी दिलचस्प है — उनकी बैचलर्स और मास्टर्स डिग्री बायोकेमिस्ट्री में है, जबकि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में विषय के रूप में राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंध चुना।
रैंक | नाम | अवसर |
एआईआर 1 | शक्ति दुबे | 5 |
एआईआर 2 | हर्षिता गोयल | 3 |
एआईआर 3 | डोंगरे अर्चित पराग | 2 |
एआईआर 4 | शाह मार्गी चिराग | 5 |
एआईआर 5 | आकाश गर्ग | 2 |
एआईआर 6 | कोमल पुनिया | 3 |
एआईआर 7 | आयूष बंसल | 3 |
एआईआर 8 | राज कृष्ण झा | 5 |
एआईआर 9 | आदित्य अग्रवाल | 5 |
एआईआर 10 | मयंक त्रिपाठी | 3 |
अवलोकन: 2024 की टॉप 10 सूची में जगह बनाने वाले 8 उम्मीदवारों को 3 से 5 प्रयास करने पड़े।
लगभग 93% सफल उम्मीदवारों को UPSC परीक्षा पास करने के लिए एक से अधिक प्रयास करने पड़ते हैं।
वहीं, पहले ही प्रयास में सफल होने वाले (freshers) अभ्यर्थियों की संख्या केवल 7% के आसपास है।
यह साफ़ दिखाता है कि UPSC अब धीरे-धीरे ऐसी परीक्षा बन चुकी है जहां एक से ज़्यादा प्रयास करना अपवाद नहीं, बल्कि सामान्य बात बन गई है। पहले, कई टॉपर्स दूसरे प्रयास में ही सफलता पा लेते थे। लेकिन अब की स्थिति अलग है — यहां तक कि टॉप रैंक हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी कई वर्षों की तैयारी और कई प्रयासों के बाद ही सफल हो रहे हैं।
अभ्यर्थियों के लिए यह रुझान एक महत्वपूर्ण संकेत देता है — अब UPSC की तैयारी का मतलब है:
लंबी अवधि की प्रतिबद्धता,
बार-बार प्रयास, और
लंबे समय चक्र वाली तैयारी।
पहले प्रयास में सफलता अब एक दुर्लभ उपलब्धि बन चुकी है, न कि अपेक्षित परिणाम।
93% को कई प्रयासों की आवश्यकता: क्या यूपीएससी योग्यता की नहीं, बल्कि धैर्य की परीक्षा बन रही है?
आंकड़े यह स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि पहले ही प्रयास में UPSC पास करना अब असामान्य बात है। सफल अभ्यर्थियों की बड़ी संख्या को चयन सूची (final list) में जगह बनाने तक कई प्रयास करने पड़ते हैं।
प्रयास | सफल उम्मीदवारों का प्रतिशत (%) | वास्तविकता |
पहला | ~7% | दुर्लभ - 10 में से केवल 1 फ्रेशर ही सफल होता है |
दूसरा | ~17–18% | उल्लेखनीय सुधार |
तीसरा | ~23–24% | सबसे अधिक सफलता दर |
चौथा | ~21–22% | अब भी अच्छी संभावना |
पांचवां | ~12% | संभावना घटने लगती है |
छठा | ~9% | बहुत कम लोग सफल होते हैं |
सातवां | ~4% | लगभग नगण्य |
आठवां या उससे अधिक | ~3% | अत्यंत दुर्लभ |
लगभग 93% सफल उम्मीदवारों को UPSC परीक्षा पास करने के लिए एक से अधिक प्रयास करने पड़ते हैं। इनमें भी तीसरे और चौथे प्रयास में सफलता की सबसे अधिक संभावना देखी गई है।
यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि UPSC अब एक “single-shot” परीक्षा नहीं रही, बल्कि यह एक दीर्घकालिक तैयारी यात्रा बन चुकी है — जहां निरंतर प्रयास और मानसिक दृढ़ता की उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका है जितनी कि ज्ञान और रणनीति की।
आज UPSC की तैयारी लाखों युवाओं के लिए जीवन होम कर देने की बात बन चुकी है। बहुत से अभ्यर्थी अपने जीवन के दूसरे दशक और यहां तक कि तीसरे दशक के शुरुआत के साल भी सिर्फ इस परीक्षा को समर्पित कर देते हैं — अक्सर नौकरी, उच्च शिक्षा या अन्य कॅरियर विकल्पों को टाल कर या छोड़ कर। जहां ज़्यादातर उम्मीदवारों को लंबे समय तक अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर, यह लंबी तैयारी प्रक्रिया एक संपूर्ण समानांतर अर्थव्यवस्था को भी चला रही है।
विभिन्न हितधारकों पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है, इसका एक संक्षिप्त विवरण यहां दिया गया है:
हितधारक | मिलने वाला लाभ | क्या खोते हैं |
कोचिंग संस्थान | सैकड़ों करोड़ की फीस, लंबे समय तक जुड़े रहने वाले उम्मीदवार | कुछ नहीं – दिनोंदिन आर्थिक समृद्धि |
सरकार | जीएसटी राजस्व, परीक्षा शुल्क | युवाओं का गुस्सा, आलोचना |
छात्र | 0.1% सफल | युवावस्था के साल, मानसिक स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता |
समस्या बिल्कुल स्पष्ट है: क्या यूपीएससी का रूपांतरण निष्पक्ष परीक्षा के बजाय एक व्यवसायिक मॉडल में हो गया है?
कोचिंग दिग्गज पहले की तुलना में कहीं अधिक विस्तार कर रहे हैं।
छात्र साल दर साल बार-बार ग्राहक बनते जा रहे हैं।
परिवार अपनी बचत खर्च कर रहे हैं, और अपने बच्चों को 0.1% सफलता दर वाली परीक्षा में असफल होते देख रहे हैं।
इससे एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म मिलता है: जहां UPSC की तैयारी एक व्यापक इकोसिस्टम को बनाए रखती है, वहीं लाभ और लागत का संतुलन असमान है। अधिकांश छात्रों के लिए परिणाम अनिश्चित और अनिश्चितता से भरा होता है, जबकि कोचिंग संस्थान और सरकार की आय स्थिर है।
वैकल्पिक विषय रुझान - क्या प्रणाली कुछ धाराओं को दूसरों की तुलना में अधिक तरजीह दे रही है?
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक वैकल्पिक विषय है। अभ्यर्थी एक विस्तृत सूची में से इनको चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, फिर भी पिछले कुछ वर्षों में, कुछ विषय शीर्ष रैंक पर हावी होते दिख रहे हैं।
यहां पिछले कुछ वर्षों के टॉप रैंकरों का एक सारांश दिया गया है, जिसमें उनके शैक्षिक बैकग्राउंड और चुने हुए ऑप्शनल विषयों की जानकारी शामिल है:
वर्ष | शीर्ष रैंकर | शैक्षिक पृष्ठभूमि | चुना गया ऑप्शनल विषय |
2024 | शक्ति दुबे (AIR 1) | बीएससी बायोकेमिस्ट्री | राजनीति शास्त्र एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Political Science & IR) |
2024 | हर्षिता गोयल (AIR 2) | बी.कॉम | राजनीति शास्त्र एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Political Science & IR) |
2024 | डोंगरे अर्चित (AIR 3) | बी.टेक (ईईई) | दर्शनशास्त्र (Philosophy) |
2023 | डोनुरु अनन्या (AIR 3) | बीए भूगोल | मनुष्य जाति का विज्ञान |
2022 | उमा हरथी (AIR 3) | बी.टेक (सिविल इंजीनियरिंग, आईआईटी हैदराबाद) | मानवशास्त्र (Anthropology) |
2021 | अंकिता अग्रवाल (AIR 2) | बीए अर्थशास्त्र (सेंट स्टीफंस) | राजनीति शास्त्र एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Political Science & IR) |
प्रमुख विषयों का प्रभुत्व : राजनीति शास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (PSIR), समाजशास्त्र (Sociology), और मानवशास्त्र (Anthropology) वाले उम्मीदवार टॉपर्स की सूची में ज्यादा देखे जाते हैं।
तकनीकी विषयों की कम उपस्थिति : इंजीनियरिंग और चिकित्सा विज्ञान जैसे तकनीकी विषयों के उम्मीदवारों की संख्या तो काफी है, पर वे टॉप रैंक में कम दिखाई देते हैं।
संतुलन का प्रभाव : इस एकाधिकार के कारण कई अभ्यर्थी महसूस करते हैं कि चयनित अधिकारियों में विषय विविधता कम हो रही है।
हालांकि इन प्रवृत्तियों के कारणों में स्कोरिंग पैटर्न, संसाधनों की उपलब्धता और सामान्य अध्ययन से ओवरलैप शामिल हो सकते हैं, लेकिन बड़ी बहस का मुद्दा है: क्या यूपीएससी को वैकल्पिक विषयों की व्यवस्था को उनके वर्तमान स्वरूप में जारी रखना चाहिए, या अधिक शैक्षणिक विविधता को प्रोत्साहित करने के लिए प्रणाली पर पुनर्विचार करना चाहिए?
यूपीएससी को लंबे समय से भारत के सबसे प्रतिष्ठित कॅरियर के द्वार के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ती चिंताएं यह दर्शाती हैं कि यह परीक्षा देश की युवा प्रतिभा को व्यर्थ करने वाली भी बनती जा रही है। हर साल, डॉक्टर, इंजीनियर और टॉप विश्वविद्यालयों के स्नातक अपनी सफलताओं और कॅरियर के अवसरों को टालकर, कई सालों तक UPSC की तैयारी में लगे रहते हैं — जो अक्सर उनकी पेशेवर उन्नति, उच्च शिक्षा और आर्थिक स्थिरता की कीमत पर होता है।
लंबे तैयारी के चक्र: कई उम्मीदवार 5 से 10 साल तक तैयारी करते हैं, लेकिन केवल बहुत कम ही सफल हो पाते हैं।
यूपीएससी में गिरती सफलता दर (UPSC Falling success rates in Hindi): आवेदन करने वालों में से 0.1% से भी कम ही अंतिम रूप से चयनित होते हैं।
सीमित अवसर: आवेदनकर्ताओं की संख्या बढ़ती जा रही है, पदों की संख्या स्थिर बनी हुई है, जिससे प्रतिस्पर्धा और भी कड़ी हो गई है।
बार-बार प्रयासों पर निर्भरता: सफल उम्मीदवारों में से अधिकांश को 3 से 5 या उससे अधिक प्रयास करने पड़ते हैं।
सुधार के समर्थक (Supporters of Reform) का तर्क है कि UPSC को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
अधिकारियों की संख्या बढ़ाना: भारत की प्रशासनिक जरूरतों के अनुरूप रिक्तियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए ताकि अवसर बढ़ सकें।
फ्रेशर्स को प्रोत्साहित करना: नए उम्मीदवारों के लिए परीक्षा प्रक्रिया को अधिक संतुलित और सहज बनाया जाना चाहिए, जिससे पहली बार प्रयास करने वालों की सफलता की संभावना बढ़े।
प्रयासों की अधिकतम संख्या को सीमित करना: लंबे समय तक चलने वाले तैयारी चक्रों को कम किया जाना चाहिए, ताकि उम्मीदवारों को अनावश्यक मानसिक और आर्थिक बोझ न उठाना पड़े।
न्यायसंगतता सुनिश्चित करना: विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों के लिए समान अवसर प्रदान किए जाएं, और महंगे कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता को कम किया जाए।
इसके केंद्र में प्रतिभा बनाम सहनशीलता की बहस है। 5-6 प्रयासों में चयनित होने वाले उम्मीदवारों से वाकई में क्या प्रतिभापोषण वाली व्यवस्था प्रदर्शित होती है या यह सतत प्रयास और संसाधन की परीक्षा बन गई है? और सबसे अहम बात, क्या राष्ट्र को इस व्यवस्था का लाभ मिल रहा है- या इसमें असफल रहने वाले लाखों प्रतिभागियों के रूप में देश को ऊर्जा और प्रतिभा का ह्रास उठाना पड़ा रहा है?
तो, हम आपसे जो बड़ा सवाल पूछते हैं वह यह है:
क्या यूपीएससी सचमुच भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं का चयन कर रहा है - या यह एक ऐसी प्रणाली बन गई है जो प्रतिभाओं को पोषित करने की बजाय उन्हें खत्म कर देती है?
ऐसे में जो एक बड़ा सवाल उठता है वह यह है कि - क्या वाकई में यूपीएससी द्वारा भारत की सेवा के लिए सबसे प्रखर उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा है- या इसके चलते प्रतिभापोषण की बजाए प्रतिभाक्षरण किया जा रहा है?
On Question asked by student community
Hello, it’s wonderful to see such clarity at such a young age. Becoming an IAS officer requires consistent preparation, strong general knowledge, and excellent analytical skills. Right now, your main focus should be building a strong base in academics, especially in subjects like History, Geography, and Economics. Start reading NCERT textbooks from class 6 to 12 for these subjects. Make it a habit to read a good newspaper like The Hindu or Indian Express daily to improve your current affairs knowledge. Practice writing short essays on important topics it will help you in the Mains stage later. Participate in debates, quizzes, and discussions to improve your speaking and thinking skills. After 12th, choose a graduation subject that you enjoy but also overlaps with UPSC syllabus. Most importantly, stay consistent and avoid distractions. You have plenty of time to prepare, so start slowly and build steadily.
Wishing you success in your IAS dream, and thank you for sharing.
The choice of your graduation path – integrated BSc BEd (Zoology), BTech CS, or integrated BS-MS at IISER Thiruvananthapuram – to pursue the dream of becoming an IAS officer requires careful consideration.
A Bachelor of Arts degree, particularly in subjects like Political Science, History, or Economics, is often considered the most aligned with the CSE syllabus, covering crucial topics relevant to General Studies papers.
However, a science background, especially with a BTech CS degree, develops analytical and logical reasoning skills beneficial for the CSAT paper and could be advantageous for certain optional subjects like Mathematics or potentially Engineering disciplines.
Even if you choose a science or engineering stream, you can still select humanities-based optional subjects that overlap with the General Studies papers like Anthropology, Sociology, or Public Administration, which many engineers have successfully opted for.The integrated BSc BEd (Zoology) offers a strong foundation in science and a backup career in teaching, but the primary focus of the BEd component may not be directly relevant to the UPSC syllabus. The integrated BS-MS at IISER offers a strong research focus and academic excellence, potentially leading to diverse career paths in science, academia, industry, or even government agencies But still it is not connected with your ias dream.
Among all b.tech is best as many successful candidates from engineering backgrounds, have utilized their analytical skills and knowledge to crack the exam.
Hello
This is the typical schedule of the IAS Exam (UPSC CSE):
Notification Release:
February
Online Application Window:
February to early March
Prelims Exam:
May or June
Mains Exam:
September/October
As for 2025, the registration date is already gone, so you have to see for 2026 now. The registration will open most probably in February 2026 so stay tuned.
To know more about the IAS Exam: UPSC CSE
Hope this answer helps! Thank You!!!
A candidate who has undergone heart surgery can be eligible for the IAS post if they are medically fit and can perform the required duties without any serious health problems The UPSC allows candidates to appear for the exam if they meet the general physical and mental fitness criteria After clearing the main examination and interview all selected candidates must undergo a detailed medical examination by a government medical board If the candidate has recovered well from heart surgery and there are no complications they can be declared fit for service However if the surgery has caused any permanent disability and if it is certified under the benchmark disability rules then the candidate may be eligible for reservation under the persons with disabilities category Final eligibility depends on the report given by the medical board during the selection process
If a person has undergone heart surgery for ASD which means Atrial Septal Defect and is now medically fit then they can apply for the IAS exam There is no restriction for such candidates if their physical and mental condition is stable and they can perform the duties required in civil services However selection to IAS also depends on passing the medical test conducted after clearing the main exam and interview If the person has any lasting disability due to the heart condition and it is certified by a government medical board then they may be considered under the benchmark disability category as per the Rights of Persons with Disabilities Act In such cases the candidate may come under reservation for persons with disabilities in the specific category mentioned by the medical authority It is always advised to check the official UPSC notification and consult with a government hospital for proper disability certification before applying
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